देहरादून/उत्तरकाशी। उत्तरकाशी जिले के धराली, सुखीटॉप और हर्षिल क्षेत्र में आई भीषण आपदा को लेकर एक बड़ा खुलासा सामने आया है। इसरो के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ रिमोट सेंसिंग (आई.आई.आर.एस.), देहरादून ने करीब एक वर्ष पूर्व ही उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण को एक विस्तृत रिपोर्ट भेजकर चेतावनी दी थी कि इन क्षेत्रों के ऊपरी हिस्सों में कई कृत्रिम झीलों का निर्माण हो चुका है, जो किसी भी समय टूटकर एक भयानक आपदा का रूप ले सकती हैं।
आई.आई.आर.एस., जो देश के सबसे प्रतिष्ठित रिमोट सेंसिंग संस्थानों में से एक है, की यह चेतावनी रिपोर्ट स्पष्ट रूप से संभावित ग्लेशियर लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF) और भूस्खलन जनित आपदाओं के खतरे की ओर इशारा कर रही थी। लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि आपदा प्रबंधन विभाग ने इस रिपोर्ट को नकारते हुए दावा किया कि उन्हें ऐसी कोई सूचना प्राप्त नहीं हुई।
समय रहते कार्रवाई होती तो टल सकता था बड़ा नुकसान
विशेषज्ञों का कहना है कि यदि आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने आई.आई.आर.एस. की चेतावनी को गंभीरता से लेते हुए त्वरित स्थलीय निरीक्षण, भूगर्भीय सर्वेक्षण और जी.आई.एस. मैपिंग करवाई होती, तो धराली और हर्षिल में हुई जान-माल की भारी हानि से बचा जा सकता था। पुराने और नए सैटेलाइट डेटा का तुलनात्मक अध्ययन (Comparative Analysis) करके कृत्रिम झीलों की स्थिति, पानी की मात्रा और संभावित टूटने के खतरे का सटीक आकलन किया जा सकता था।
लेकिन हकीकत यह है कि उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग के पास पिछले 5 वर्षों से जी.आई.एस. (Geographic Information System) डेटा का अपडेट ही नहीं है, क्योंकि जी.आई.एस. कार्य देखने वाले अनुभवी कार्मिक विभाग में मौजूद नहीं हैं। डेटा अपडेट न होने के कारण पुराने और नए उपग्रह चित्रों की तुलना करके जोखिम का आकलन करना ही संभव नहीं हुआ।
हाईकोर्ट के आदेश की भी अनदेखी
गौरतलब है कि वर्ष 2019 में अजय गौतम ने माननीय उत्तराखंड उच्च न्यायालय में एक याचिका दाखिल की थी, जिसमें गंगोत्री ग्लेशियर और उसके आसपास के क्षेत्रों में कृत्रिम झीलों के निर्माण को लेकर गंभीर खतरे की चेतावनी दी गई थी। इस पर उच्च न्यायालय ने आपदा प्रबंधन विभाग को निर्देश दिए थे कि वह समय-समय पर गंगोत्री ग्लेशियर और उसके समीपवर्ती क्षेत्रों का निरंतर सर्वेक्षण करे और रिपोर्ट तैयार करे।
लेकिन, उपलब्ध तथ्यों के अनुसार, आपदा प्रबंधन विभाग ने न तो नियमित सर्वेक्षण किया और न ही कोर्ट के आदेशों का पालन किया। नतीजा यह हुआ कि आई.आई.आर.एस. जैसी प्रतिष्ठित संस्था की चेतावनी भी धूल फांकती रही और अंततः धराली, सुखीटॉप और हर्षिल में जान-माल का भारी नुकसान हो गया।
भ्रष्टाचार और लापरवाही के गंभीर आरोप
वरिष्ठ भाजपा नेता रविन्द्र जुगरान ने इस पूरे मामले पर गहरी नाराजगी व्यक्त की है। उन्होंने कहा,
“उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग अब ‘घोटाला प्रबंधन विभाग’ बन चुका है। करोड़ों रुपये के भ्रष्टाचार और घोटालों के कारण यह विभाग आपदा प्रबंधन जैसे गंभीर कार्यों को दरकिनार कर चुका है।”
जुगरान ने मुख्यमंत्री से मांग की है कि आई.आई.आर.एस. की रिपोर्ट को नजरअंदाज करने वाले आपदा प्रबंधन विभाग और आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सभी जिम्मेदार अधिकारियों की पहचान की जाए और उनकी लापरवाही के कारण हुई जनहानि और वित्तीय नुकसान के लिए उनके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई और मुकदमा दर्ज किया जाए।
उन्होंने यह भी घोषणा की कि वह जल्द ही आपदा प्रबंधन विभाग में हुए करोड़ों रुपये के कथित भ्रष्टाचार और घोटालों की एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करके मुख्यमंत्री को सौंपेंगे।
जनता में बढ़ा अविश्वास
धराली और हर्षिल जैसी घटनाओं ने राज्य की आपदा प्रबंधन व्यवस्था पर जनता का भरोसा कमजोर कर दिया है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक तकनीकी संस्थानों की चेतावनियों को गंभीरता से लेकर समय पर कार्रवाई नहीं की जाएगी, तब तक उत्तराखंड जैसे संवेदनशील पर्वतीय राज्य में आपदाओं के खतरे को कम नहीं किया जा सकता।
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