रिपोर्ट : कार्तिक उपाध्याय
एक तरफ देश से वीआईपी कल्चर खत्म करने की बातें समय समय पर सामने आती रहती हैं परंतु अस्पताल के वार्डो में भी वीआईपी कल्चर आप सिर्फ़ उत्तराखंड में ही दिल्ली सकते हैं।
जी हां चंद दिनों पूर्व एक अख़बार (अमृत विचार) ने प्रकाशित किया था बेस अस्पताल हल्द्वानी में बने प्राइवेट वार्ड की पूरी स्तिथि को,यह प्राइवेट वार्ड मरीजों को नहीं दिए जा रहें थे बल्कि स्वयं अस्पताल ने इन वार्डो को अपने कार्य के लिए प्रयोग करना शुरू कर दिया था,जिसके बाद सोया स्वास्थ्य विभाग जगा और डीजी हेल्थ ने दौरे के दौरान सभी प्राइवेट वार्डो को मरीजों के लिए खोलने के लिए निर्देश दिए हैं।
बेस अस्पताल के प्राइवेट वार्ड तो आम मरीजों के लिए खोल दिए जाएंगे लेकिन अब सवाल यह हैं कि कुमाऊं के द्वार हल्द्वानी के सबसे बड़े अस्पताल सुशीला तिवारी,जिसपर निर्भर हैं पूरा कुमाऊं,भाबर,तराई और उत्तराखंड की सीमा से लगे उत्तर प्रदेश के कुछ इलाके।
सुशीला तिवारी अस्पताल में बने प्राइवेट वार्डो की बात करें तो उनके दरवाज़े पर एक कागज हमेशा लगा मिलता हैं जिसपर लिखा होता हैं Only for VIP reserved bed,कहने को तो स्वास्थ्य हमारा मौलिक अधिकार हैं पर अस्पताल के वार्डो तक फैल चुका वीआईपी कल्चर इसका सीधा उलंघन हैं,आखिर कौन हैं वाह वीआईपी जो अपने लिए पहले से सरकारी अस्पतालों के वार्डो को रिजर्व रखते हैं या यूं कहें किन वीआईपी के लिए अस्पताल प्रबंधन इन वार्डो को रिजर्व रखता हैं,जबकि इनका इस्तेमाल किसी भी नागरिक को करने का होना चाहिए।
सवाल यह भी हैं कि क्या अस्पताल प्रबंधन को वार्ड वीआईपी के लिए रिजर्व रखने का कोई विशेष अधिकार हैं या राज्य सरकार एवम अधिकारियों द्वारा इन्हे रिजर्व रखने के निर्देश प्राप्त हैं।
सरकारी अस्पतालों में बेड का रिजर्व होना बताता हैं की प्रदेश एवम देश में वीआईपी कल्चर खत्म नहीं हो रहा बल्कि और अधिक बड़ रहा हैं जो समानता का अधिकार देने वाले भारतीय संविधान के विपरीत हैं।
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