कैसे बना यह विवादित फैसला?
राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय पिथौरागढ़, चंपावत और बागेश्वर को विश्वविद्यालय परिसर घोषित किए जाने के बाद वहाँ कार्यरत कर्मचारियों से विश्वविद्यालय या महाविद्यालय में जाने का विकल्प मांगा गया था।
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जिन कार्मिकों ने विश्वविद्यालय का विकल्प चुना, उनका इंटरव्यू लेकर चयन किया गया।
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बहुत कम ने विश्वविद्यालय में ज्वाइन किया और बाकी को बाद में प्रदेश के अन्य महाविद्यालयों में भेज दिया गया।
इसी बीच, पिथौरागढ़ परिसर से 29 शिक्षक/कर्मचारी धारणाधिकार अवधि में उच्च शिक्षा विभाग में वापस चले गए।
लेकिन विभाग में 14 सहायक प्राध्यापकों के लिए पद ही उपलब्ध नहीं थे, जिसके कारण वे 16 महीनों से बिना पद के कार्यरत थे।
कौन-कौन लौटेगा वापस पिथौरागढ़ परिसर में?
उच्च शिक्षा विभाग में खाली पदों की कमी के चलते निम्नलिखित विषयों के 14 सहायक प्राध्यापकों को वापस कैंपस भेजने का फैसला लिया गया है—
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B.Ed – 6 सहायक प्राध्यापक
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BBA – 2 सहायक प्राध्यापक
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MBA – 4 सहायक प्राध्यापक
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संगीत – 2 सहायक प्राध्यापक
शिक्षणेत्तर कार्मिक भी होंगे समायोजित
पिथौरागढ़ परिसर में कुल 17 शिक्षणेत्तर कर्मचारी भी वापस समायोजित किए जाएंगे, जिनमें—
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6 UPNL कर्मी भी शामिल हैं।
उपनल कर्मियों के मामले में स्पष्ट है कि उन्हें परिसर में जाना ही होगा, क्योंकि उनका प्रायोजन UPNL के माध्यम से हुआ था। वापस न जाने पर उन्हें उपनल में वापस भेज दिया जाएगा।
कानूनी चुनौती की पूरी संभावना
महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि—
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किसी भी कर्मचारी ने परिसर का ऑप्शन नहीं चुना था,
फिर भी उन्हें जबरन पुनः परिसर भेजा जा रहा है।
इसके चलते यह आदेश अत्यधिक विवादित हो गया है और माना जा रहा है कि इसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
शासनादेश जल्द जारी होगा
समस्त प्रशासनिक और विभागीय औपचारिकताएं पूरी कर ली गई हैं।
अब केवल शासनादेश जारी होना बाकी है।













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