मुख्य बिंदु:
✅ एसजीआरआर विश्वविद्यालय के भूविज्ञान शोधार्थियों ने पहले ही जताई थी आपदा की आशंका
✅ उत्तरकाशी के बड़कोट से भेजी जा रही राहत सामग्री
✅ श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल में आपदा पीड़ितों का निःशुल्क उपचार
✅ चयनित पाठ्यक्रमों में आपदा पीड़ितों के बच्चों को मिलेगा मुफ्त प्रवेश
✅ पर्वतीय क्षेत्रों में सतर्कता के लिए दिए सुझाव
देहरादून/उत्तरकाशी।
उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के धराली क्षेत्र में हाल ही में आई भीषण प्राकृतिक आपदा के पीड़ितों के लिए श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय और श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल, देहरादून ने मानवीय संवेदनाओं के साथ राहत कार्यों की कमान संभाल ली है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने बुधवार को उत्तरकाशी ज़िले के बड़कोट स्थित एसजीआरआर पब्लिक स्कूल के माध्यम से ज़रूरी राहत सामग्री भेजने की व्यवस्था की है।
विशेष बात यह है कि एसजीआरआर विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के शोधार्थियों ने अपने पूर्व शोध में उत्तराखंड के दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में मानसून के दौरान बादल फटने की आशंका जताई थी और यह चेतावनी दी थी कि गाढ़-गदेरे जैसे जल स्रोत बरसात के मौसम में जलस्तर बढ़ने से अचानक बाढ़ जैसी आपदाएं ला सकते हैं।
राहत कार्यों की पहल और व्यवस्थाएं:
एसजीआरआर विश्वविद्यालय के प्रधान कार्यालय ने सभी संस्थानों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि वे आपदा राहत में पूरी तरह सहयोग करें। राहत सामग्री में दवाइयां, खाद्य पदार्थ, कंबल, कपड़े और अन्य जरूरी सामान शामिल हैं।
साथ ही, विश्वविद्यालय ने घोषणा की है कि आपदा प्रभावित परिवारों के बच्चों को कुछ चयनित कोर्सेज़ में निःशुल्क प्रवेश दिया जाएगा। देहरादून स्थित श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल भी आपदा पीड़ितों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराएगा।
नेतृत्व और समन्वय:
इस मानवीय प्रयास का नेतृत्व श्री गुरु राम राय विश्वविद्यालय के चेयरमैन श्रीमहंत देवेंद्र दास जी महाराज के निर्देशों पर किया जा रहा है।
एसजीआरआर पब्लिक स्कूल बड़कोट की प्रधानाचार्या कमला रावत और पुरोला के प्रधानाचार्य उत्तम सिंह चौहान ने स्थानीय प्रशासन, विशेषकर एडीएम उत्तरकाशी के साथ समन्वय स्थापित कर राहत सामग्री भेजने की व्यवस्था सुनिश्चित की है। मार्ग बाधित होने के कारण सामग्री को उत्तरकाशी स्थित राहत नियंत्रण कक्ष में भेजा जाएगा।
भविष्य की चेतावनी और सुझाव:
भूविज्ञान शोधार्थियों का मानना है कि ऐसी आपदाएं बिना पूर्व संकेत आती हैं और रात्रि के समय अधिक विनाशकारी होती हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि संवेदनशील महीनों में पहाड़ी क्षेत्रों से आबादी को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करने की पूर्व योजना बनाई जानी चाहिए ताकि जन-धन की हानि को कम किया जा सके।
यह पहल केवल राहत नहीं, एक सशक्त सामाजिक उत्तरदायित्व का उदाहरण भी है, जो राज्य के शैक्षिक और चिकित्सा संस्थानों को आपदा प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए प्रेरित करता है।
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