उत्तराखंड जिसे देवभूमि के नाम से भी जाना जाता है। वह राज्य आज एक सर्वे के मुताबिक बेटीयों की तस्करी में अव्वल है।
बड़े ही दुख की बात है कि जहां एक तरफ हम बेटियों को देवी की तरह पूजते हैं। वहीं दूसरी ओर बेटियों की तस्करी में उत्तराखंड जैसी देवभूमि सबसे आगे है।
बच्चों की हिफाजत के लिए काम करने वाली संस्थाएं भी यह बात बताती हैं कि बेटियों की कम उम्र में शादी के नाम पर तस्करी बढ़ती जा रही है जिसमें उत्तराखंड काफी आगे चल रहा है।
नेशनल क्राइम कंट्रोल ब्यूरो द्वारा 2019 में जारी हुई रिपोर्ट के अनुसार बच्चों की तस्करी (चाइल्ड ट्रैफिकिंग) के मामलों में दस हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड पहले स्थान पर है।
फिर भी उत्तराखंड में बच्चों की तस्करी को लेकर ज्यादा मामले रिपोर्ट मे नहीं आते है। सिर्फ दो प्रतिशत मामले ही संज्ञान में आ पाते हैं।
बेटियों की कम उम्र में शादी करने की यह परंपरा लॉकडाउन में ज्यादा बढ़ी है। माउंटेन चिल्ड्रन फाउंडेशन की संस्थापक अदिति कौर ने बताया कि 2019 में उनके पास करीब पांच मामले रिपोर्ट हुए थे लेकिन 2020 में 12 ऐसे मामले सामने आए, जिनमें बेटियों की छोटी उम्र में शादी कराई जा रही थी। उनका कहना है कि कहीं न कहीं यह शादियां बालिकाओं की तस्करी से जुड़ी हुई हैं।
एम्पावरिंग पिपुल संस्था के मुख्य कार्यवाहक एवं अंतरराष्ट्रीय एक्टिविस्ट ज्ञानेंद्र कुमार ने कहा कि,उनके अनुसार बाल विवाह करना सोचा समझा अपराध है।
बच्चों की तस्करी रोकने के लिए वर्ष 2005 से काम कर रहे हैं। वह अपनी जान जोखिम में डालकर 78 मामले पकड़ चुके हैं।
उन्होंने कहा कि पुलिस की मदद से मुकदमा दर्ज कराया तो इन सभी मामलों में वह खुद वादी की ओर से न्यायालयों के चक्कर काटते रहते हैं। बच्चों की तस्करी को नियंत्रण करने के लिए सबसे बड़ा जरिया कम्यूनिटी पुलिसिंग है।
साथ ही उन्होंने कहा कि उत्तराखंड सरकार ने बच्चों की तस्करी को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।