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अल्मोड़ा जिले के खैरदा गांव की रहने वाली नवीं कक्षा की छात्रा ईशा ने वह कर दिखाया है, जो बड़े-बड़े एनवायरनमेंटल प्रोजेक्ट भी नहीं कर पाए। ईशा ने जंगलों में आग लगने का कारण माने जाने वाले पिरूल (Pine Needles) से सुंदर और उपयोगी टोकरियां (eco-friendly baskets) बनाकर सभी को हैरान कर दिया है।
ईशा की बनाई पिरूल की टोकरियां: सुंदर, टिकाऊ और प्लास्टिक का विकल्प
ईशा द्वारा तैयार की गई ये टोकरियां न केवल खूबसूरत हैं, बल्कि टिकाऊ भी हैं। इनका उपयोग घरेलू कार्यों के साथ-साथ बाजार में सब्जी, फल या अन्य वस्तुएं रखने के लिए भी किया जा सकता है। ये टोकरियां plastic basket alternative के तौर पर बेहद प्रभावशाली हैं और पर्यावरण के लिए सुरक्षित भी।
जिस पिरूल को पहाड़ का दुश्मन कहा जाता है, उसे ईशा ने बनाया आजीविका का साधन
पिरूल (सूखी चीड़ की पत्तियां) को अक्सर जंगलों में लगने वाली आग के लिए दोषी ठहराया जाता है, लेकिन ईशा ने इसे sustainable resource में बदल दिया है। उसने खेल-खेल में ही पिरूल से ऐसे प्रोडक्ट्स बनाना शुरू किया जो बाजार में बिक सकें। अब ईशा की टोकरियां न केवल उसकी कला का उदाहरण हैं बल्कि women-led innovation की मिसाल भी।
गांव की बेटी बनी बदलाव की मिसाल
रामगढ़ ब्लॉक के खैरदा गांव में रहने वाली ईशा आधुनिक संसाधनों से दूर, अपनी रचनात्मकता से नई पहचान बना रही है। इस पहल से न केवल पिरूल का सही इस्तेमाल संभव है, बल्कि गांव की बेटियों को self-employment और eco-friendly entrepreneurship के लिए प्रेरणा भी मिल रही है।
देखिए ईशा की बनाई शानदार टोकरियों की तस्वीरें
निष्कर्ष:
ईशा की यह पहल न केवल eco-friendly lifestyle को बढ़ावा देती है, बल्कि उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्यों में पिरूल जैसी सामग्री से आजीविका के नए द्वार खोलने का रास्ता भी दिखाती है। अगर आपको भी ईशा की ये खूबसूरत टोकरियां पसंद आईं, तो शेयर करें और उसके हुनर को सलाम करें।
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