उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं मंडल को जोड़ने वाली एक मात्र रामनगर-कालागढ़-पाखरो-चिल्लरखाल-लालढांग (कंडी मार्ग) 21 साल से नहीं बन पाया है।
अफसरों के प्रभावी पैरवी न करने से आम लोगों का जहां सफर में लंबा वक्त गुजारना पड़ रहा है, वहीं यूपी के रास्ते टैक्स भी देना पड़ रहा है।
इस मार्ग पर काफी समय तक कोटद्वार से रामनगर के बीच जीएमओ की सेवाएं संचालित होती थी, लेकिन ये अब बंद हो चुकी है। यहां तक की पाखरो-कालागढ़-रामनगर मार्ग पर निजी वाहनों की आवाजाही पर भी रोक है। सिर्फ वन विभाग के अफसर ही इस मार्ग से आ-जा सकते हैं।
वन्यजीवों की सुरक्षा के मद्देनजर सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में कार्बेट के बफर जोन से होते हुए सड़क बनाने की अनुमति दी थी, लेकिन इससे लोगों की राह आसान नहीं हो पा रही थी। लिहाजा राज्य सरकार ने वन्यजीवों के गलियारों पर एलिवेटेड मार्ग का प्रस्ताव सुझाया था। इसे नेशनल वाइल्ड लाइफ बोर्ड से भी मंजूर कर चुका है।
मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक डा. पराग मधुकर धकाते के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने इस मार्ग पर सिर्फ ब्लेक टापिंग की अनुमति दी है। अलबत्ता, चिल्लरखाल-लालढांग मार्ग कुछ हिस्से पर निर्माण को मंजूरी मिल चुकी है, जिस पर कुछ काम भी हो चुका है।पूर्व कैबिनेट मंत्री डा. हरक सिंह रावत ने जरूर कंडी मार्ग को लेकर पैरवी की, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल होने से फिलहाल मार्ग के निर्माण में रोड़ा अटक चुका है।
बकौल, हरक यदि कंडी मार्ग बनता है तो रामनगर से कोटद्वार की दूरी लगभग 72 किमी कम हो सकती है। वहीं, रामनगर से हरिद्वार की दूरी भी 30 किमी तक घट जाएगी। चूंकि, रामनगर से हरिद्वार, देहरादून आने के लिए चिल्लरखाल के बजाय लोग मोरघट्टी के पास से आना पसंद करेंगे। यहां से एक लिंक मार्ग बनाने का भी प्रस्ताव था।
सिर्फ चिल्लरखाल में शुरू हुआ काम:राज्य सरकार राजाजी पार्क के बफर जोन चिल्लरखाल-लालढांग के बीच लगभग 11 किमी सड़क बनाने की मंजूरी दे चुकी है। इसके लिए 6.50 करोड़ रुपये स्वीकृत हुए थे और बीच-बीच में कुछ पिलर भी बने हैं। लेकिन अब इसका भी काम फिलहाल रोक दिया गया है।
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