*स्वास्थ्य मंत्री से BJP के 8 विधायकों ने की मांग,कहा कि पीपीपी मोड अस्पतालों से दिलाओ मुक्ति
देहरादून: पहाड़ प्रदेश में बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं की हालत सुधारने के नाम पर गुज़रे सालों में राज्य सरकार ने एक के बाद एक सरकारी अस्पताल पीपीपी (Public Private Partnership) मोड में देती चली गई।
लेकिन आज हालत यह है कि पीपीपी मोड के इन सरकारी अस्पतालों में इलाज के नाम पर घोर लापरवाही बरतने की घटनाएं सामने आ रही हैं। पानी सिर से ऊपर बहने लगा तो सत्ताधारी BJP के एक दो नहीं बल्कि 8 विधायकों ने पीपीपी मोड अस्पतालों से मुक्ति दिलाने की मांग स्वास्थ्य मंत्री डॉ धन सिंह रावत से कर दी है।
इन आठ विधायकों में एक रामनगर विधायक दीवान सिंह बिष्ट भी शामिल थे और रामनगर में पीपीपी मोड पर चल रहे सरकारी अस्पताल में जानलेवा लापरवाही का ताज़ा मामला सामने आ गया है। रामनगर अस्पताल प्रबंधन और डॉक्टरों पर मोहल्ला खताड़ी निवासी गर्भवती महिला इकरा के परिजनों ने आरोप लगाया कि छोटा ऑपरेशन के नाम पर जच्चा के एक कट लगाया गया जिसके बाद शिशु के सिर में घाव हो गए और उसकी मौत हो गई।
स्थानीय लोगों का आरोप है कि ऐसी लापरवाही कई मासूमों के साथ हो चुकी है लिहाज़ा पीपीपी मोड से संचालित अस्पताल सवालों के घेरे में है। पिछली सरकार में मंत्री रहते बंशीधर भगत ने भी इस अस्पताल का दौरा कर कई ख़ामियां पकड़ी थी।
दरअसल, यह तो महज़ एक उदाहरण मात्र है राज्यभर में जहाँ जहाँ पीपीपी मोड में सरकारी अस्पताल चल रहे हैं, वहाँ वहाँ आए दिन प्रबंधन और डॉक्टरों द्वारा लापरवाही बरतने की घटनाएँ होती रही हैं। यही वजह है कि BJP के आठ विधायकों ने अपने विधानसभा क्षेत्रों में पीपीपी मोड में अस्पताल न चलाने की माँग की है। विधायकों ने स्वास्थ्य मंत्री डॉ धन सिंह रावत के सामने अपना दुखड़ा रोया है लेकिन सवाल है कि कोरे आश्वासन से आगे क्या विधायकों की मांग पर एक्शन होता नजर आएगा?
दरअसल, स्वास्थ्य मंत्री डॉ धनदा ने पीपीपी मोड में चलाए जा रहे अस्पतालों में हो रही दिक्कतों को लेकर बैठक बुलाई थी जिसमें विधायकों का दर्द छलका। विधायकों ने न केवल अपने क्षेत्रों में चल रहे पीपीपी मोड अस्पतालों की जमीनी हकीकत बयां की बल्कि जरूरी सुझाव भी दिए ताकि इलाज के दौरान खासी दिक्कतें झेल रही स्थानीय जनता को राहत मिल सके।
स्वास्थ्य मंत्री और तमाम विभागीय अफसरान के सामने विधायकों ने पीपीपी मोड अस्पतालोें की कार्य प्रणाली पर सवाल उठाए। विधायकों ने कहा कि इन अस्पतालों में स्थाई डॉक्टर्स की बजाय रोटेशन पर डॉक्टर तैनात किए गए हैं जिससे मरीजों को प्रॉपर इलाज नहीं मिल पाता है। हालांकि स्वास्थ्य मंत्री ने लापरवाही बर्दाश्त न करने की हिदायत देते हुए मुख्य चिकित्साधिकारियों को खुद इन अस्पतालों की निगरानी करने को कहा है।
वैसे इससे पहले भी कई ऐसी रिपोर्ट आ चुकी जिसमें उत्तराखंड के सरकारी अस्पतालों को पीपीपी मोड पर देने के प्रयोग को कामयाब नहीं माना गया। लेकिन सरकार ने ऐसी तमाम आपत्तियों को दरकिनार किया और आज खुद भाजपा विधायक इसके विरोध में खड़े नजर आ रहे हैं। सरकार की जिद और हकीकत का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि मुख्यमंत्री और स्वास्थ्य मंत्री रहते त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपने विधानसभा क्षेत्र डोईवाला के सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र को पीपीपी मोड में देकर दम भरा था कि लोगों को बेहतर इलाज मिलेगा लेकिन आज स्थानीय विधायक बृजभूषण गैरोला भी पीपीपी मोड का विरोध करने वाले आठ विधायकोें में शुमार हैं। उस वक्त कुछ लोगों ने यह भी कहा था कि हिमालयन मेडिकल कॉलेज अस्पताल जौलीग्रांट को फायदा पहुँचाने के लिए आसपास के सरकारी अस्पतालों को बीमार बनाया जा रहा है। जाने निजी अस्पतालों को फायदा पहुँचाने के आरोपों में कितना दम है।
स्वास्थ्य महानिदेशालय में हुई इस बैठक में डॉ धन सिंह रावत के साथ टिहरी विधायक किशोर उपाध्याय, रामनगर विधायक दीवान सिंह बिष्ट, लैंसडौन विधायक दिलीप रावत, देवप्रयाग विधायक विनोद कंडारी, डोईवाला विधायक बृजभूषण गैरोला, घनसाली विधायक शक्तिलाल साह, पौड़ी विधायक राजकुमार पोरी और रानीखेत विधायक प्रमोद नैनवाल शामिल रहे। जबकि स्वास्थ्य सचिव राधिका झा, बाल आयोग अध्यक्ष डॉ गीता खन्ना, NHM मिशन निदेशक सोनिका और हेल्थ डीजी डॉ शैलजा भट्ट आदि उपस्थित रहे।