विश्वविद्यालय में हमेशा धारा 144 लगाने और धरना-प्रदर्शन को प्रतिबंधित करने का आदेश जारी हुआ है।
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय शिक्षक-कर्मचारी समन्वय समिति ने एक आपात कालीन बैठक की है जिसमे उन्होंने कुलसचिव पीडी पंत को पद से हटाने की मांग की है।
आपको बता दे कि शिक्षक और कर्मचारी कुलसचिव की तरफ़ से जारी हुए आदेश से बौखलाये हुए हैं। जिसमें उन्होंने विश्वविद्यालय में हमेशा धारा 144 लगाने और धरना-प्रदर्शन को प्रतिबंधित करने का आदेश जारी किया है। साथ ही शिक्षक-कर्मचारियों ने इस फैसले के ख़िलाफ़ आंदोलन करने और इसे हाईकोर्ट में चुनौती देने का ऐलान किया है।
आपको बता दे कि कुलसचिव की तरफ़ से जारी पत्र में शिक्षकों-कर्मचारियों के संगठन को अवैध ठहराने की कोशिश की गई है। जबकि इन दोनों संगठनों का गठन सभी शिक्षकों और कर्मचारियों की आम सभा बुलाकर किया गया है।
बैठक में शिक्षक संघ अध्यक्ष डॉ. भूपेन सिंह ने कहा कि कुलपति उनके सामने नतमस्तक डमी शिक्षक संघ बनाना चाहते हैं। इसलिए इस तरह के असंवैधानिक फैसले जारी किये जा रहे हैं। अपने हितों के लिए आंदोलन करना शिक्षकों का लोकतांत्रिक अधिकार है। उन्होंने विश्वविद्यालय में तुरंत पूर्णकालिक रजिस्ट्रार को नियुक्त करने और तब तक डिप्टी रजिस्ट्रार को चार्ज देने की मांग की है।
बैठक में समन्वय समिति के सदस्यों ने एकमत होकर कुलसचिव के प्रभार से पीडी पंत को तुरंत हटाने की मांग की। शिक्षक संघ ने कहा है कि प्रोबेशन पीरियड में ही पीडी पंत को कुलसचिव बनाया जाना असंवैधानिक है। प्रोबेशन पीरियड में शिक्षक के दस्तावेज़ों और सक्षमता की जांच होती है। नियुक्ति का मामला विचाराधीन होने के नाते उन्हें हाईकोर्ट के आदेश पर सशर्त नियुक्ति दी गई है। कुलसचिव विश्वविद्यालय के सभी दस्तावेज़ों का कस्टोडियन होता है। ऐसे में प्रोफेसर पीडी पंत विश्वविद्यालय के दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ कर सकते हैं। पीडी पंत की नियुक्ति बिना उनके पूर्व संस्थान कुमाऊं विश्वविद्यालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर की गई है। भूगर्भ विज्ञान के शिक्षक पीडी पंत का विषय विश्वविद्यालय में पढ़ाया ही नहीं जाता है। इसके बाद भी दूसरे विषय की सीट को भूगर्भ विज्ञान में बदलकर उनकी नियुक्ति की गई है।
बैठक में इस बारे में भी चर्चा की गई कि विश्वविद्यालय में हमेशा धारा 144 लागू करने के कुलपति या कुलसचिव आदेश जारी नहीं कर सकता। यह काम सिर्फ़ मजिस्ट्रेट कर सकता है और इस सिलसिले में अब तक ऐसा कोई आदेश जारी नहीं है। देश के तमाम विश्वविद्यालयों में परीक्षा के स्ट्रांग रूम होते हैं लेकिन वहां धारा 144 नहीं लगाई जाती। मुक्त विश्वविद्यालयम इस तरह का फरमान जारी करना तानाशाहीपूर्ण रवैया है। शिक्षक और कर्मचारी मिलकर ही विश्वविद्यालय चलाते हैं और कुलसचिव से ज़्यादा विश्वविद्यालय की परंपराओं को समझते हैं।
भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समान हितों के लिए संगठन बनाने का अधिकार भी देता है। इसलिए संगठन बनाना और अपनी मांगों के लिए आंदोलन करना शिक्षकों और कर्मचारियों का संवैधानिक हक है। कुलसचिव के इन तुगलकी फरमानों के ख़िलाफ़ शिक्षक संघ कानूनी राय ले चुका है और जल्द ही नैनीताल हाईकोर्ट में मुक़दमा दर्ज करेगा।
उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में वर्तमान कुलपति के कार्यकाल कर्मचारियों और शिक्षकों में असंतोष बना हुआ है। कुछ शिक्षकों से दो जगह हाज़िरी लेने और अपने चहेते लोगों को हाज़िरी से छूट लेने का मामले से अभी बहुसंख्यक शिक्षको में असंतोष बना हुआ है। अपना वेतन बढ़ाने और दो सफाई कर्मचारियों को हटाये जाने के ख़िलाफ़ पिछले दिनों कर्मचारी संघ 15 दिन तक कार्य बहिष्कार कर चुका है। संविदा पर रखे शिक्षकों का कार्यकाल सिर्फ़ दो-दो महीने बढ़ाने को लेकर भी शिक्षकों में गुस्सा है। विश्वविद्यालय की नियुक्ति में भ्रष्टाचार का मामला राज्य स्तर पर छाया रहा है। कुलपति की तरफ़ से आंदोलन के दौरान पुलिस बुला लेने से शिक्षकों और कर्मचारियों में जबरदस्त रोष है।
समन्वय समिति की बैठक में शिक्षक संघ अध्यक्ष डॉ. भूपेन सिंह, कोषाध्यक्ष डॉ. वीरेंद्र सिंह, कर्मचारी संघ अध्यक्ष राजेश आर्या, महासचिव हर्षवर्धन लोहनी, प्रमोद जोशी आदि मौजूद थे।