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उत्तराखंड पुलिस के मुख्य आरक्षी दीपक कुमार आर्य (44) की रेबीज़ संक्रमण से दर्दनाक मौत हो गई है। बताया जा रहा है कि वे 29 जून को शामली जिले के गढ़ीपुख्ता कस्बे में आवारा कुत्ते के काटने का शिकार हुए थे। उन्होंने तुरंत एंटी-रेबीज़ वैक्सीन की दो खुराक तो ले ली, लेकिन वैक्सीन के बावजूद उनकी हालत बिगड़ती चली गई और अंततः 3 जुलाई की रात मेरठ के खरखौदा स्थित अस्पताल में उन्होंने दम तोड़ दिया।
दीपक कुमार मूल रूप से पेलखा गांव (शामली) के रहने वाले थे और वर्तमान में पौड़ी जिला पुलिस लाइन में तैनात थे। 2002 में उत्तराखंड पुलिस में भर्ती हुए दीपक कुछ समय से लीवर की बीमारी से भी जूझ रहे थे और उसी वजह से छुट्टी लेकर शामली में इलाज करा रहे थे।
घटना वाले दिन वे घरेलू सामान लेने बाजार गए थे, तभी एक आवारा कुत्ते ने उन्हें काट लिया। उन्होंने समय पर रेबीज़ का इंजेक्शन भी लगवाया, लेकिन चार दिन बाद तबीयत अचानक बिगड़ने लगी। पहले स्थानीय डॉक्टर से संपर्क किया गया, फिर मेरठ के अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया।
परिवार का दर्द:
दीपक के बड़े भाई अमित ने बताया कि डॉक्टर्स ने मौत की वजह रेबीज़ संक्रमण को बताया है। उन्होंने कहा कि दीपक ने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति (VRS) का आवेदन दिया था, लेकिन वह अभी तक स्वीकृत नहीं हुआ था। दीपक की पत्नी भारती आर्य भी उत्तराखंड पुलिस में सिपाही हैं और वर्तमान में हरिद्वार कोतवाली में तैनात हैं। उनके दो छोटे बेटे (13 और 10 वर्ष के) हैं।
शव का पोस्टमार्टम शामली पोस्टमार्टम हाउस में देर से हुआ, जिससे परिजनों ने नाराज़गी जताई है। इस पर जिलाधिकारी अरविंद चौहान ने जांच का आश्वासन दिया है।
प्रशासन पर सवाल:
यह कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले 16 मई को कांधला में एक चाय विक्रेता राजीव शर्मा (45) की भी रेबीज़ से मौत हो गई थी, जबकि उन्होंने भी समय पर इंजेक्शन लगवाया था।
यह लगातार हो रही घटनाएं स्वास्थ्य व्यवस्थाओं, वैक्सीन की प्रभावशीलता और आवारा कुत्तों पर नियंत्रण को लेकर सवाल खड़े करती हैं।
क्या कहता है समाज?
इस दुखद घटना ने एक बार फिर रेबीज़ की गंभीरता और आवारा कुत्तों से बढ़ते खतरे को उजागर कर दिया है। अब जनता और पुलिस महकमे की मांग है कि:
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हर जिले में रेबीज़ टीकाकरण शिविर लगाए जाएं।
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आवारा कुत्तों की संख्या पर नियंत्रण के लिए ठोस नीति बने।
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रेबीज़ से जुड़े मामलों में आपातकालीन स्वास्थ्य सेवाओं की मॉनिटरिंग हो।
निष्कर्ष:
मुख्य आरक्षी दीपक आर्य की मृत्यु केवल एक व्यक्तिगत क्षति नहीं, बल्कि सिस्टम को जगाने वाली चेतावनी है। यह समय है कि प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और नगर निकाय मिलकर इस ओर त्वरित कदम उठाएं, ताकि भविष्य में किसी और की जान यूं न जाए।
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